बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन
प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
युद्ध के दौरान प्रमुख रूप से प्रयोग की जाने वाली प्रमुख रासायनिक गैसों तथा उसके प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर -
आधुनिक समय में युद्ध के लिए हथियार के रूप में नर्व गैस (Nerve Gas), श्वसन संतापक रसायन (Respiratory Irrant Agents), फुफ्फुस क्षतिकारक (Lung Injurant Agents), फफोला उत्पादक रसायन (Vesicant Chemicals), अश्रु उत्पादक पदार्थ (Lacsimatory Agents), उद्दीपक रसायन (Stimulant Chemicals), वनस्पति विरोधी रसायन (Anti Plant Chemicals) का प्रयोग किया जाता है।
(1) नर्व गैस (Nerve Gas) नर्व गैस का प्रभाव शरीर के तंत्रिका तंत्र पर होता है। इसके कारण मांसपेशियों में आपस में ही क्रिया-प्रतिक्रिया होने लगती है और वे ठीक प्रकार से काम नहीं करतीं
जर्मन वैज्ञानिक डॉ. श्रेडर ने 1936 में तीन नर्व गैस टेबुन (GA), सेरिन (GB) और सोमन (GD) की खोज की। इनके नाम के आगे G जुड़ा होने के कारण इसे 'G परिवार' की गैस भी कहा जाता है। ये सभी गैसें बहुत ही विषैली, गंधहीन, रंगहीन और स्थायीकारी भी होती हैं। इसे युद्ध में आसानी से छितराया जा सकता है। G परिवार से कहीं अधिक विषैली गैस V परिवार के रसायनों की खोज द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद में ब्रिटेन में हुई। VX नामक गैस में सैनिकों के कपड़ों एवं जूतों में घुसकर भी त्वचा के सम्पर्क में आने की क्षमता होती है।
नर्व गैस के शरीर में पहुँचने पर ही इसका पता चलता है। अतः बचाव के साधन कम होते हैं। घातक मात्रा से ज्यादा होने पर मृत्यु कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटों में ही हो जाती है। अल्पमात्रा होने पर भी नाक बहने, सीने में जलन, आँखों में जलन, अनैच्छिक मल-मूत्र निकलना, कंपकंपी, झटके, सिरदर्द, घबराहट, बेहोशी जैसे लक्षण होने लगते हैं।
(2) श्वसन संतापक रसायन (Respiratory Irrant Agent ) इसका प्रभाव संवेदी तंत्रिका पर पड़ता है, जिससे तेज पीड़ा होती है। सभी श्वसन संतापक रसायन आर्सेनिक परिवार के होते हैं। प्रमुख श्वसन संतापक रसायनों में डाइक्लोरो आर्साइन, डाई फिनायल सायनार्साइन, इथाइल कार्बाजोल, मिथाइल आइसो सायनेट, सल्फर डाई ऑक्साइड, अमोनिया आदि हैं।
(3) फुफ्फुस क्षति कारक (Lung Injurant Agent) - फुफ्फुस क्षति कारक रसायन फेफड़ों में पहुँचकर आक्सीजन के शुद्धीकरण की क्रिया को रोकता है। इससे धीरे-धीरे मनुष्य के शरीर का रक्त विषैला बन जाता है जो उसके मृत्यु का कारण बन जाता है। रासायनिक संगठन के आध र पर इसे क्लोरीन वर्ग और आर्सेनिक वर्ग में बांट सकते हैं।
(4) फफोला उत्पादन रसायन (Vesicant Chemicals ) यह रसायन शरीर की त्वचा के सम्पर्क में आकर उसमें उपस्थित पानी से विश्लेषण करके अम्ल बनाता है। इससे कोशिकायें गलना प्रारम्भ कर देती हैं। जिससे त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं। इस श्रेणी के गैस का स्थायित्व अधिक होता है। प्रमुख फफोला उत्पादक रसायन निम्न हैं-
(i) मस्टर्ड - इसका रासायनिक नाम डाई क्लोरो एथिल सल्फाइड है। शुद्ध व्यवस्था में गंधहीन इस रसायन में अशुद्धियों के कारण सरसों के तेल जैसी गंध आती है, अतः इसका नाम मस्टर्ड गैस पड़ गया। यह गैस त्वचा पर स्पर्श मात्र से फफोले पैदा करती है। प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध तथा ईरान-इराक युद्ध (1980-88) में इसका प्रयोग किया गया था।
(ii) लेवीसाइट - इसका रासायनिक नाम क्लोरोविनाइल डाइक्लोरो आर्साइन है। यह सामान्यतः द्रव अवस्था में ही रहता है। यह मस्टर्ड गैस से अधिक वाष्पशील और विषैला है। यह लोहे एवं इस्पात से क्रिया नहीं करता अतः गोलों में भरा जा सकता है।
(5) अश्रु उत्पादक पदार्थ (Lacsimatory Agents) - अश्रु उत्पादक पदार्थ के सम्पर्क में आने से रेटिना के संवेदी उदीप्ति की प्रतिक्रिया से नेत्रों की अश्रुग्रंथी से धीरे-धीरे अश्रु प्रवाह होने लगता है। अधिकांश अश्रु उत्पादक पदार्थ द्रव अवस्था में होते हैं। इसका प्रभाव मनुष्यों पर होता है, पशुओं पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। इस गैस का प्रयोग प्रथम विश्वयुद्ध में किया गया था।
ग्वालियर के निकट टेकनपुर की सीमा सुरक्षा बल स्थित अश्रु गैस इकाई की स्थापना 1967 में की गयी थी। यहाँ के उत्पादों में फ्लोटिंग टीयर स्मोक डिवाइस मगर, ड्यूल शेल- धूमकेतु, डाई मार्कर ग्रेनेड अमिट सेल्फ प्रोटेक्शन एयरोसोल डिवाइस रक्षक तथा स्टन ग्रेनेड मार्क तीन नागपाश शामिल हैं। इसमें 'मगर' विश्व का ऐसा पहला अश्रु गैस का गोला है जो पानी में डूबकर भी गैस छोड़ता है। 'रक्षक' लिपिस्टिक जैसे आकार का अश्रु गैस उपकरण है जिसे जेब में रख सकते हैं।
(6) उद्दीपक रसायन (Stimulant Chemicals) - मानवीय व्यवहार को प्रभावित करने वाले इस रसायन को मनो-रसायन भी कहते हैं। इन रसायनों के प्रभाव से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की गतिविधियाँ बहुत बढ़ जाती हैं। इससे प्रभावित व्यक्तियों का अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रह जाता है और वह विचित्र व्यवहार करने लगता है।
उद्दीपक रसायनों में ग्लापकोटलेट एस्टर, एंट्रोपीन और एल. एस. डी. प्रमुख हैं।
(7) वनस्पतिरोधी रसायन (Anti Plant Chemicals) इन रसायनों के प्रयोग से पेड़-पौधों के पत्ते झड़ जाते हैं, सूख जाते हैं, अथवा वनस्पति की वृद्धि रुक जाती है या जमीन बंजर हो जाती है। वियतनाम युद्ध में इसका प्रयोग हुआ था। इसमें नारंगी रसायन, सफेद रसायन, पिक्लोरैम, नीला रसायन, केकोडिलिक अम्ल आदि का छिड़काव प्रमुख है।
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- प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
- प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
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- प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।